वेदों का सार

।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
वेदों का सार: क्या लिखा हैं हमारे वेदों में?

वेद मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन और हिन्दू धर्म के लिखित दस्तावेज़ हैं। ऐसा माना जाता है की हिन्दू धर्म के आदर्श विश्व के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। ये वेद ही हैं जिनके आधार पर अन्य धार्मिक मान्यताओं और विचारधाराओं का आरंभ और विकास हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार वेदों को ईश्वर की वाणी भी समझा जाता है। वेद में लिखे गए मंत्र जिनहे ऋचाएँ कहा जाता है, कहा जाता है की इनका इस्तेमाल आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके लिखे जाने के समय था।


वेद शब्द का अर्थ:
वेद शब्द की उत्पत्ति वास्तव में संस्कृत भाषा के शब्द ”विद” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है जानना या ज्ञान का जानना। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान का जानना भी होता है। 

वेद क्या हैं?
सरल शब्दों में कहा जाए तो वेद भारतीय और विशेषकर हिन्दू धर्म के वे ग्रंथ हैं। इनमें ज्योतिष, गणित, विज्ञान, धर्म, औषधि, प्रकर्ति, खगोल शास्त्र और इन सबसे संबन्धित सभी विषयों के ज्ञान का अकूत भंडार भरा पड़ा है। ऋषि-मुनियों द्वारा रचे वेद हिन्दू संस्कृति की रीढ़ माने जाते हैं। 

 

वेदों का इतिहास:
वेदों का इतिहास का धागा एक अनंत दिशा की ओर ले जाता है फिर भी कुछ इतिहासकारों के अनुसार 1500-1000 ई. पू. के आसपास के समय में वेदों की रचना की गयी होगी। युनेस्को ने भी 1800 से 1500 ई.पू. में रची ऋग्वेद की 30 पाण्डुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहर की श्रेणी में रखा है।


 हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में इस बात का प्रमाण मिलता है की वेदों की रचनाकार स्वयं भगवान ब्रह्मा हैं और उन्होंने इन वेदों के ज्ञान तपस्या में लीन अंगिरा, आदित्य, अग्नि और वायु ऋषियों को दिया था। इसके बाद पीड़ी दर पीड़ी वेदों का ज्ञान चलता रहा।

वेदों की संख्या:
सभी जानते हैं की वेदों की संख्या चार है, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की शुरुआत में वेद केवल एक ही था, अध्ययन की सुविधा की द्रष्टि से उसे चार भागों में बाँट दिया गया। एक और मत इस संबंध में प्रचलित है जिसके अनुसार, अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या करी और ऋग्वेद, आयुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया। ऋग्वेद, आयुर्वेद और सामवेद को क्रमशः 


अग्नि, वायु और सूर्य से जोड़ा गया है। इसको आगे स्पष्ट करते हुए बताया गया है की अग्नि से अंधकार दूर होता है और प्रकाश मिलता है इसी प्रकार वेदों से अज्ञान का अंधेरा छंट कर ज्ञान का प्रकाश होता है। वायु का काम चलना है जिसका वेदों में अर्थ कर्म करने से जोड़ा गया है। इसी प्रकार सूर्य अपने तेज और प्रताप के कारण पूजनीय है यही वेदों में भी स्पष्ट किया गया है।

 

वेदों के प्रकार
वेद चार प्रकार के हैं और इनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

 

1. ऋग्वेद: 

वेदों में सबसे पहला वेद ऋग्वेद कहलाता है। इस वेद में ज्ञान प्राप्ति के लिए लगभग 10 हज़ार मंत्रों को शामिल किया गया है जिनमें पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र आदि लिखे गए हैं।  


ये सभी मंत्र कविता और छंद के रूप में लिखे गए हैं। इसे विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना गया है।

 

2. यजुर्वेद

इस वेद में समर्पण की प्रक्रिया के लिए लगभग 40 अध्यायों में 3750 गद्यात्मक मंत्र हैं। ये मंत्र यज्ञ की विधियाँ और यज्ञ में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्व ज्ञान का वर्णन भी इस वेद में है। इस वेद की दो शाखाएँ -शुक्ल और कृष्ण हैं। 


 

3. सामवेद

साम का अर्थ है रूपान्तरण, संगीत, सौम्यता, और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें संगीत की उपासना है जिसमें 1875 मंत्र हैं।


 

 

4. अथर्ववेद:

वेदों की श्रृंखला में सबसे आखिरी वेद है । इसमें गुण, धर्म, आरोग्य के साथ यज्ञ के लिए कवितामय मंत्र जिनकी संख्या 7260 हैं जो लगभग 20 अध्यायों में हैं , शामिल हैं। इसमें रहस्यमय विध्याओं के जैसे जादू, चमत्कार आदि के भी मंत्र हैं। 


 

वेदों का सार:
वेदों का सार समझने के लिए वेदों का अध्ययन करना बहुत जरूरी है। इसके लिए वेदों के अंगों जिनहे “वेदांग” कहा जाता है का पढ़ा जाना जरूरी है। ये इस प्रकार हैं:


 

1. व्याकरण:

इसमें शब्दों और स्वरों की उत्पत्ति का बोध होता है।

2. शिक्षा: 

इसमें वेद मंत्रों के उच्चारण की विधि बताई गयी है।

3. निरुक्त:


वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन अर्थों में किया गया है उनके इन अर्थों का उल्लेख निरुक्त में किया गया है।

 

4. ज्योतिष:


इसमें वैदिक अनुष्ठानों और यज्ञों का समय ज्ञात होता है।

 

5. कल्प: 

वेदों के किस मंत्र का उपयोग किस मंत्र से करना चाहिए इसका वर्णन यहाँ दिया गया है। इसकी तीन शाखाएँ हैं — शौर्तसूत्र, ग्र्हयसूत्र,धर्मसूत्र।


 

6. छंद:

वेदों में प्रयोग किये गए मंत्र आदि छंदों की रचना का ज्ञान इसी शास्त्र से होती है।

इसके अतिरिक्त चारों वेदों के आगे भी चार भाग हैं जो इस प्रकार हैं:

संहिता: इसमें मंत्रों की विवेचना की गयी है।
ब्राह्मण ग्रंथ: इस भाग में ग्ग्द्य के रूप में कर्मकांड की व्याख्या की गयी है
आरण्यक: इस भाग में कर्मकांड का क्या उद्देश्य हो सकता है, इसकी व्याख्या करी गयी है।

 

उपनिषद:

इसमें ईश्वर, आत्मा और परब्रह्म के स्वभाव और आपसी संबद्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन किया गया है ।


कुछ विद्वानों के अनुसार, ब्राह्मण, आरण्यक, संहिता और उपनिषद के योग को भी समग्र वेद कहा जाता है। वेदों का अध्ययन इतना विशाल और गहरा है जिसका आदि और अंत समझना बहुत कठिन है। शोध रिपोर्टों के अनुसार वेदों का सार उपनिषद में समाया है और उपनिषद का सार भागवत गीता को माना गया है। इस क्रम में वेद, उपनिषद और भागवत गीता है वास्तविक हिन्दू धर्म ग्रंथ हैं, अन्य और कोई नहीं हैं। वेद स्म्र्तियोन में वेद वाक्यों को विस्तार से समझाया गया है। वाल्मीकि रामायण और महाभारत को इतिहास और पुराणों की प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ माना गया है।  


इसलिए हिन्दू मनीषियों ने वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया गया है जिसका मुख्य कारण इन ग्रन्थों में वेदों के सारे ज्ञान को संक्षेप और सरल शब्दों में बताया गया है।

 




    १. ईशावास्योपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
    २. केनोपनिषद् - साम वेद
    ३. कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
    ४. प्रश्नोपनिषद् - अथर्व वेद
    ५. मुण्डकोपनिषद् - अथर्व वेद
    ६. माण्डूक्योपनिषद् - अथर्व वेद
    ७. ऐतरेयोपनिषद् - ऋग् वेद
    ८. तैत्तरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
    ९. श्वेताश्वतरोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
    १०. बृहदारण्यकोपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
    ११. छान्दोग्योपनिषद् - साम वेद।। 

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Comment:
इस लेख से विदित होता है। कि वेद समग्र ज्ञान का भंडार हैं। इससे कहीं भी यह उद्घाटित नहीं होता कि पुरातन काल में भारतवर्ष में जाति आधारित समाज था। फिर क्यों और कैसे एक ऐसी व्यवस्था का प्रचलन हुआ जिसके कारण ऊंच और नींच जाति जैसी विसंगति का प्रादुभव हुआ।
विश्व की प्राचीनतम रचना जो मनुष्य के जीवन काल से सम्बंधित सारे क्रियाकलापों, नैसर्गिक और नश्वर दोनों, के सार तत्व का विस्तृत वणॆन करता है। आवश्यकता है इन रचनाओं को पढ़कर समझने और आत्मसात् करने की।





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