सूक्तियां
।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
सूक्तियां
वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात पीताम्बरादरुण बिम्बफलाधरोष्ठात पूर्णेन्दुसुंदर मुखादरविंदनेत्रात् कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ~ Krishna.
०१. "शरीरमाद्यं खलु धर्म साधन"→ AIIMS
०२. "धर्मार्थकामकोक्षाणामारोग्य मूलमुत्तमम्" व
“स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च” →महंत दिग्विजयनाथ आयुर्वेद चिकित्सालय
०३. यस्य देशस्य तो जन्तुस्तज्नं तस्यौषधं हितम्
०४. संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ
1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।
2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।
3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।
4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।
5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।
7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।
8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।
9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।
11. अतिपर्दे हता लङ्का। – घमंडी का सिर नीचा।
12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।
13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।
15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।
16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।
17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।
18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है।
19. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पण्डित:। – भागते चोर की लंगोटी सही।
20. यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। – सेवा बिन मेवा नहीं।
सूक्तियां
01.कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥
भावार्थ :
न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं ।
02. विष्णुरेकादशी गंगा तुलसीविप्रधेनवः।
असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी ।।
अर्थात- भगवान विष्णु, एकादशी-व्रत, गंगा नदी, तुलसी, ब्राह्मण और गाय- ये छः इस दुर्गम असार संसार में मुक्ति देनेवाले है।
एकादशी के दिन चंद्रमा ग्यारहवीं क्षितिज की कक्षा पर होता है इसलिए इस दिन सर्वसिद्धि सुलभ होता है।
मनीराम जी महाराज (मन) यदि वश में हो तो ही जीवन सार्थक है
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सरस्वती श्रुति महती न हीयताम
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतंगमय
असतो मा सद्गमय
श्रुति मे गोपाय
बलस्य मूलं विज्ञानं
योगक्षेम वहाम्यहम
तत् सत्
कर्मण्डेयवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
सत्यमेव जयते ("मुण्डकोपनिषद से")
अहिंसा परमो धर्म:
एक: सद्विप्रा बहुधा वदन्ति
वसुधैव कुटुंबकम्
सर्व धर्म समभाव
अप्प दीपो भव - अपना प्रकाश स्वयं बनो
तेन त्यक्तेन भुंजीथा - त्याग भाव से संसार में रहना चाहिए
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद दुख भाग्भवेत।।
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम्, कामये दु:खतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् - न राज्य की न स्वर्ग की ओर न ही मोटर्स की कामना है बस यही कामना है कि दुःखी प्राणियों के कष्ट दूर कर सकूं।
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणै रे
अग्रत: सकलं शास्त्रं पृष्ठत: सशरं धनु:
जन सेवा हीं प्रभु सेवा
ॐ सहना भवतु सहनो भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै, तेजस्वीनावधीतामस्तु मयि द्विषावहै।। - ईश्वर हमारा रक्षण करें, हम सब मिलकर सुख भोगें, एक दुसरे के लाभ के लिए प्रयास करें, हम सबका जीवन तेज से भर जाए, परस्पर कोई द्वेष या ईर्ष्या न हो ।।
नर करनी करे तो नारायण हो जाए , पौधों में परमात्मा दिखना, नारी तू नारायणी।
वाच काछ मन निश्चल राखे, परधन नव झाले हाथ रे।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, यत्रैतास्तु न पूजयेन्तु , सर्वास्तत्राफला: क्रिया।
आनो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वत: (ऋग्वेद) - किसी भी सद्विचार को अपनी तरफ किसी भी दिशा से आने दें।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी - जन्मभूमि मां के समान है, जो स्वर्ग से भी सुंदर हैं।
विद्या ददाति विनयम्
विना बुध्दि: जरो विद्या:
स्वत: प्रमाणं परत: प्रमाणम्,बृहस्पते सवितर्बोध्दयैनम्
योऽनुचान: स नो महान
सा विद्या या विमुक्तये
सारस्वत मंत्र
शरदिंदु सुंदर रुचिश्चेतसि सा मे गिरां देवि।
अपह्रत्य तम: सन्ततमर्थानखिलान प्रकाश्यतु।।
अवामावामार्घे सकलमुभयाकार, घटना द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं, भवति यत। तदन्तर्मन्त्रं मे स्मर हरमयं सेन्दुममलं , निराकारं शश्वज्जप नरपते! सिध्यतु सते ।।
अपने मन की इच्छाओं को काबू में रखना चाहिए, वरना ये शौक गुनाहों में बदल जाएंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता जी में कहा है - इस मन को मार अर्जुन।
ये धरा जिसपर घुम रही हम उसी केंद्र के बिंदु है।
गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।
साधु योगी अग्न जल इनकी उल्टी रीत
परशुराम बचके रहो थोडी कीजै प्रीत
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।।श्रीराधाकृष्ण विजयतेतराम।।