हरे कृष्ण महामंत्र
।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
हरा सा कथ्यते सद्भिद श्री राधे वृषभानुजा
वृंदावनेश्वरी राधा, कृष्णो वृंदावनेश्वर:।
जीवनेन धने नित्यं राधा कृष्ण गतिर्मम।।
हरि शब्द’ का सम्बोधन प्रथमा विभक्ति का रूप ’हरे’ है, उसी प्रकार ’आकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द हरा’ का रूप भी ’हरे’ ही निकलता है । अतः ’हरे’ से २ आशय सम्भव हैं, ’हरि’ और ’हरा’ । ’हरि’ मानकर हमने ऊपर व्याख्या की ही है । यदि ’हरा’ माना जाए, तो एक मत के अनुसार हरा का अर्थ है ’हरि की शक्ति’ इति । अतः इस मतानुसार महामन्त्र के माध्यम से हम हरा और हरि (कृष्ण या राम के नाम से), दोनों को ही याद करते हैं । पहले हरा को, और फिर हरि (राम या कृष्ण) को ।
एक अन्य मतानुसार हरा का तात्पर्य ’राधा’ माना गया है, व ’राम’ का तात्पर्य ’राधारमण = कृष्ण = श्याम’ माना गया है । अतः इस मतानुसार अधोलिखित मन्त्र अर्थ, प्रभाव आदि सभी प्रकार से महामन्त्र के समान ही है । ध्यान दीजिए, यहाँ दोनों पङ्क्तियों का क्रम परिवर्तित है –
राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे ।
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे ॥
एक अंश जो समान रहता है वह है मन्त्र के सभी शब्दों का सम्बोधन प्रथमा विभक्ति में होना ।
श्रील जीव गोस्वामीपाद के अनुसार महामंत्र की व्याख्या
इस प्रकार है– ‘हरे’ का अर्थ है– सर्वचेतोहर: कृष्णनस्तस्य चित्तं हरत्यसौ– सर्वाकर्षक भगवान् कृष्ण के भी चित्त को हरने वाली उनकी आह्लादिनी शक्तिरूपा ‘हरा’ अर्थात– श्रीमती राधिका। कृष्ण’ का अर्थ है– स्वीय लावण्यमुरलीकलनि:स्वनै:– अपने रूप-लावण्य एवं मुरली की मधुर ध्वनि से सभी के मन को बरबस आकर्षित लेने वाले मुरलीधर ही ‘कृष्ण’ हैं।‘राम’ का अर्थ है– रमयत्यच्युतं प्रेम्णा निकुन्ज-वन-मंदिरे–निकुन्ज-वन के श्रीमंदिर में श्रीमती राधिका जी के साथ माधुर्य लीला में रमण करते करने वाले राधारमण ही ‘राम’ हैं।
अथर्व वेद ?
अथर्ववेद की अनंत संहिता में आता है–षोडषैतानि नामानि द्वत्रिन्षद्वर्णकानि हि। कलौयुगे महामंत्र: सम्मतो जीव तारिणे।। ** सोलह नामों तथा बत्तीस वर्णों से युक्त महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में जीवों के उद्धार का एकमात्र उपाय है।। **अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है–स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति। अतएव इस मूल मन्त्र का जप श्री हरि भी करते हैं, वही हरि जो कृष्ण हैं, वही श्री राम हैं!
महामन्त्र का क्रम ? जयपुर के संग्रहालय में उपलब्ध प्राचीनतम पांडु-लिपियाँ!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले ‘हरे’ नाम, उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम तथा उसके बाद ‘राम’ नाम आता है। ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण…’ से शुरू होता है, न की ‘हरे राम हरे राम….’ से। ** जयपुर के संग्रहालय में अभी भी प्राचीनतम पांडु-लिपियों में महामंत्र का क्रम इसी अनुसार देख सकते हैं।
यजुर्वेद के कलि संतारण उपनिषद् में आता है–इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं। नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते। **सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में कल्मष का नाश करने में सक्षम है| इस मन्त्र को छोड़ कर कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय चारों वेदों में कहीं भी नहीं है।
पद्मपुराण में वर्णन आता है–द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं। प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत्।।जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं– उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है|नित्य भजिये और सदा ख़ुश रहिये! :– “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे !!"इस दिव्य कंपन - इस जाप से, हमारे कृष्ण चेतना को पुनर्जीवित करने के लिए प्रभावशाली तरीका है । जीवित आध्यात्मिक आत्मा के रूप में, हम सभी मूल रूप से कृष्ण जागरूक जीव हैं लेकिन द्रव्य पदार्थ के साथ हमारे सहयोग की वजह से, अनादिकाल से हमारी चेतना अब प्रदूषित है भौतिक वातावरण से । जीवन के इस प्रदूषित अवधारणा में, हम सब भौतिक प्रकृति के संसाधनों का दोहन करने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन वास्तव में हम और अधिक से अधिक उसकी जटिलताओं में उलझते जा रहे हैं । इस भ्रम को माया, या अस्तित्व के लिए कठिन संघर्ष कहा जाता है, भौतिक प्रकृति के कड़े कानूनों पर जीतने के लिए । यह भ्रामक संघर्ष भौतिक प्रकृति के खिलाफ एक ही बार में बंद किया जा सकता है हमारे कृष्ण चेतना के पुनरुद्धार के द्वारा . कृष्ण चेतना मन पर एक कृत्रिम थोपना नहीं है । यह चेतना जीव की मूल शक्ति है । जब हम दिव्य कंपन सुनते हैं, यह चेतना पुनर्जीवित हो जाती है ।
व्यावहारिक अनुभव से भी, हम महसूस कर सकते हैं कि इस महा मंत्र के जप से, या महान जाप उद्धार के लिए एकदम से हम दिव्य परमानंद महसूस कर सकते हैं आध्यात्मिक परत पर । जब हम वास्तव में आध्यात्मिक समझ के स्तर पर अाते हैं इन्द्रिय, मन और बुद्धि से परे, तब हम दिव्य स्तर पर स्थित हैं । यह जप हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे, सीधे आध्यात्मिक मंच से अधिनियमित किया गया है, चेतना के सभी निचले स्थितियों से श्रेष्ठ - अर्थात्, कामुक, मानसिक और बौद्धिक । यह जप बिल्कुल मां के लिए बच्चे के सच्चे रोने की तरह है। माँ हरा मदद करती हैं परम पिता, हरि, या कृष्ण की कृपा प्राप्त करने में और भगवान ऐसे ईमानदार भक्त को प्रकट होते हैं । कोई अन्य साधन नहीं है, इसलिए, आध्यात्मिक बोध इस युग में प्रभावी है महा मंत्र के जप के रूप में, हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
मन्त्र की भाषा समझने या मानसिक अटकलों के बिना महामंत्र जपें!
मंत्र की भाषा को समझने की कोई जरूरत नहीं है, और न ही मानसिक अटकलों की कोई जरूरत है और न ही बौद्धिक समायोजन की, इस महा मंत्र के जप के लिए । यह आध्यात्मिक मंच से स्वतः अाती है, और यहॉ तक, कोई भी इस दिव्य ध्वनि कंपन में भाग ले सकता है बिना किसी भी पिछले योग्यता के, और उत्साह में नृत्य करे । हमने व्यावहारिक रूप से यह देखा है । यहां तक कि एक बच्चा भी जप में भाग ले सकता है या यहां तक कि एक कुत्ता भाग ले सकता है । यह जप सुना जाना चाहिए, प्रभु के एक शुद्ध भक्त के होठों से, ताकि तत्काल प्रभाव प्राप्त किया जा सके। जहां तक संभव हो, एक अभक्त के होठों के जप से बचा जाना चाहिए, जितना एक नागिन के होठों से छुआ दूध जहरीले प्रभाव का कारण बनता है, उतना ही अभक्त के होठों से किया गया जप विषाक्त पदार्थ/प्रभाव ही छोड़ता है।
उच्चतम सुख, अनन्त शक्ति प्राप्त करने हेतु महामन्त्र जपें!
यह शब्द ' हरा ' प्रभु की शक्ति को संबोधित करने का एक रूप है । 'कृष्ण और राम' दोनों, सीधे भगवान को संबोधित करने के रूप हैं, और उनका मतलब है, "उच्चतम सुख, अनन्त शक्ति ।" हरा भगवान की परम आनंद शक्ति है। यह शक्ति, जब हरे के रूप में संबोधित की जाती है, हमें परम भगवान तक पहुँचने में मदद करती है। भौतिक शक्ति, माया, भी भगवान के कई शक्तियों में से एक है, जितना कि हम भी भगवान के सीमांत शक्ति हैं। जीव को उच्च शक्ति के रूप में वर्णित किया जाता है । जब उच्च शक्ति निचली शक्ति के साथ संपर्क में अाती है, वहॉ एक असंगत स्थिति बन जाती है । लेकिन जब सर्वोच्च सीमांत शक्ति आध्यात्मिक शक्ति के साथ संपर्क में अाती है, हरा, यह जीव के लिए खुशी, सामान्य स्थिति बन जाती है । तीन शब्द, अर्थात् हरा, कृष्ण और राम, महा मंत्र के दिव्य बीज हैं, और जप एक आध्यात्मिक पुकार है प्रभु के लिए और उनकी आंतरिक शक्ति के लिए, हरा, सर्शत आत्मा को संरक्षण देने के लिए ।
कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है|
बृहन्नार्दीय पुराण में आता है–
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||
कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है| हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है!
कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं: कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं| केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है–
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार |
नाम हइते सर्व जगत निस्तार|| – चै॰ च॰ १.१७.२२
पद्मपुराण में कहा गया है–
नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:|
पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोSभिन्नत्वं नाम नामिनो:||
हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है| हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व (दिव्यता) के आगार हैं| हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं| नामी (हरि) तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है| जो कृष्ण हैं– वही कृष्णनाम है| जो कृष्णनाम है– वही कृष्ण हैं|
कृष्ण के नाम का किसी भी प्रामाणिक स्त्रोत से श्रवण उत्तम है, परन्तु शास्त्रों एवं श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र ही बताया गया है ।
कलियुग में इस महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं। कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत (१२.३.५१) का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुगमें यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफलश्रीहरिके नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ – श्रीरामरक्षास्त्रोत्रम्
भगवान शिव ने कहा, ” हे पार्वती !! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है । – रामरक्षास्त्रोत्र
ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है :
सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां, त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम् ।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य, नामैकम तत प्रयच्छति ॥
विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम ( पुण्य ), केवलएक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।
भक्तिचंद्रिका में महामंत्र का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित है-बत्तीस अक्षरों वाला नाम- मंत्र सब पापों का नाशक है, सभी प्रकार की दुर्वासनाओंको जलाने के अग्नि-स्वरूप है, शुद्धसत्त्वस्वरूप भगवद्वृत्ति वाली बुद्धि को देने वाला है, सभी के लिए आराधनीय एवं जप करने योग्य है, सबकी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस महामंत्र के संकीर्तन में सभी का अधिकार है। यह मंत्र प्राणिमात्र का बान्धव है, समस्त शक्तियों से सम्पन्न है, आधि-व्याधि का नाशक है। इस महामंत्र की दीक्षा में मुहूर्त्तके विचार की आवश्यकता नहीं है। इसके जप में बाह्यपूजा की अनिवार्यता नहीं है। केवल उच्चारण करने मात्र से यह सम्पूर्ण फल देता है। इस मंत्र के अनुष्ठान में देश-काल का कोई प्रतिबंध नहीं है।
अथर्ववेद की अनंत संहिता में आता है–
षोडषैतानि नामानि द्वत्रिन्षद्वर्णकानि हि |
कलौयुगे महामंत्र: सम्मतो जीव तारिणे ||
अर्थात : सोलह नामों तथा बत्तीस वर्णों से युक्त महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में जीवों के उद्धार का एकमात्र उपाय है|
यजुर्वेद के कलि संतारण उपनिषद् में आता है–
द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजी के द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने बताया-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं |
नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते ||
अर्थात : सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में कल्मष का नाश करने में सक्षम है| इस मन्त्र को छोड़ कर कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय चारों वेदों में कहीं भी नहीं है |
अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है–
स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति |
अर्थात : भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले ‘हरे’ नाम, उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम तथा उसके बाद ‘राम’ नाम आता है| ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण…’ से शुरू होता है |
पद्मपुराण में वर्णन आता है–
द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं |
प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत् ||
अर्थात : जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं– उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है |
विष्णुधर्मोत्तर में लिखा है कि श्रीहरि के नाम-संकीर्तन में देश-काल का नियम लागू नहीं होता है। जूठे मुंह अथवा किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नाम-जप को करने का निषेध नहीं है। श्रीमद्भागवत महापुराणका तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा-पाठ की त्रुटियां अथवा कमियां श्रीहरिके नाम- संकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं। हरि-नाम का संकीर्त्तन ऊंची आवाज में करना चाहिए |
जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:।
आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच॥
अर्थात : हरि-नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि-नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है, जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है।
हरिवंशपुराण का कथन है-
वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा।
आदावन्तेचमध्येचहरि: सर्वत्र गीयते॥
वेद , रामायण, महाभारत और पुराणों में आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र श्रीहरिका ही गुण- गान किया गया है।
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इसमें हरे का अर्थ श्री राधा व कृष्ण का अर्थ सर्व आकर्षक और राम का अर्थ है राधा रमण राम जी जो राधा जी के साथ विराजमान हैं।
लोग हरे कृष्ण महामंत्र में राम शब्द को बलराम समझते हैं या फिर दशरथ के पुत्र राम समझते हैं। परंतु यहां राम शब्द का अर्थ राधाजी के साथ रमण करने वाले राम हैं। इसलिए महामंत्र युगल राधा कृष्ण की उपासना का मंत्र है जो कि कलियुग में अवतार करके श्री कृष्ण ही वर्तमान से 530 वर्ष पूर्व बंगाल में मायापुर नामक स्थान पर जन्म लेकर श्री चैतन्य महाप्रभु के नाम से जाने जाते थे। उन्हीं ने यह महामंत्र प्रचारित किया था। महाराज ने आगे बताया कि भक्ति के भी अनेक स्तर होते हैं। जैसे श्रद्धा, साधु संग, भजन क्रिया, अनर्थ निवृति, निष्ठा, रूचि, आसक्ति, भाव और प्रेमा भाव अवस्था में श्री कृष्ण का दर्शन प्राण होता है और उस समय भक्त श्री कृष्ण के चरणों को प्राप्त होता है।
ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णायाकुण्ठमेधसे। सर्वव्याधिविनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।
प्रतिदिन प्रातः काल नींद से जगते ही बिना किसी से कुछ बोले तीन बार जप करने से सभी प्रकार के अनिष्ट का अंत हो जाता है।
श्री राधा जू प्रेममयी हैं और भगवान श्री कृष्ण आनन्दमय हैं। जहां आनन्द है वहीं प्रेम है और जहां प्रेम है वहीं आनन्द है। आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं अत: श्री राधा रानी और श्री कृष्ण एक ही हैं।
कृष्ण प्राणमयी राधा, राधा प्राणमयी हरि।
भगवान श्री कृष्ण के प्राण, श्री राधा रानी के हृदय में बसते हैं और श्री राधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं। वह जीवन नित्य धन्य है, जो श्री राधा कृष्ण के आश्रय में व्यतीत होता है।
परम ज्ञानी उद्धव जी को भगवान श्री कृष्ण जी का तत्व श्री राधा जी से प्राप्त हुआ। ऋषि अष्टावक्र ने अपने अंतिम समय में श्री राधा-माधव के दर्शन प्राप्त कर गोलोक धाम प्राप्त किया। श्री राधा जी की भक्ति से सम्पूर्ण ब्रह्मांडों के स्वामी श्री कृष्ण सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
वृंदावनेश्वरी राधा, कृष्णो वृंदावनेश्वर:। जीवनेन धने नित्यं राधा कृष्ण गतिर्मम।।
अर्थात : श्री राधा रानी वृंदावन की स्वामिनी हैं और भगवान श्री कृष्ण वृंदावन के स्वामी हैं। श्री राधा कृष्ण के परम आश्रय में मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण व्यतीत हो।
जनमाद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चर्थेष्बभिज्ञः स्वरात्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यंति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि।।
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।।श्रीराधाकृष्ण विजयतेतराम।।