दुर्गा सप्तशती संशोधन

।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
जगत जननी माता जगदम्बा कृपालु एवं अत्यंत दयालु होते हुए भी तत्क्षण दुष्टों का विनाश करने में सदैव संलग्न हैं। तथापि कुछ कुबुद्धि दुराग्रहीयों ने माता के पावन ग्रंथ श्री दुर्गासप्तशती में बलि प्रथा के समर्थन के लिए कुछ एक अंशों को तोड़ मरोड़ कर कलंकित करने का दुस्साहस किया है। अतः इसको संशोधित करने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। 

[01] श्री दुर्गासप्तशती अध्याय 12 में श्लोक संख्या 10 में

बलिप्रदाने पूजायामग्निकार्ये ........।
........................... श्राव्यमेव च।। 10 ।।

इसमें बलिप्रदाने के उपर 3 संख्या अंकित करके

बलिप्रदाने³ पूजायामग्निकार्ये ........।
........................... श्राव्यमेव च।। 10 ।।

 इसको निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट करने का कष्ट करें। 

3. बलि०— नवार्णमन्त्रेण उच्चारितं वीरासनमुद्रया एकहस्तेन एकबारमेव जलयुक्तेन नारिकेलफलं स्फोटनं इति बलिदानम्।

[02] श्री दुर्गासप्तशती अध्याय 12 में श्लोक संख्या 20 में

सर्वं ममैतन्माहात्मयं .............।
पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्च................।। 20 ।।

इसमें पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्च के स्थान पर

सर्वं ममैतन्माहात्मयं .............।
फलपुष्पार्घ्यधूपैश्च................।। 20 ।। 

करके अन्यान्य निर्दोष मूक प्राणियों की रक्षा हो सकेगी कम से कम माता जी के नाम पर तो यह पाप नहीं ही होना चाहिए।

[03] श्री दुर्गासप्तशती के वैकृतिकं रहस्यम् में श्लोक संख्या 28 में

रुधिराक्तेन बलिना मांसेन सुरया नृप।
प्रणाम.....................................।। 28 ।।

इसमें पहले पंक्ति रुधिराक्तेन...... नृप के स्थान पर निम्नलिखित पंक्ति उद्धृत करने का कष्ट करें।

वारियुक्तेन नारिकेल फलेन स्फोटयित्वा नृप। 
प्रणाम..............................................।। 28।।


उपरोक्त संशोधन अथवा आप अपने विवेक से भी श्लोक की रचना कर मां के लिए समर्पित कर सकते हैं और बलि प्रथा का निर्मूलन कर जगत जननी माता का वास्तविक पुजन कर सकते हैं माता के पावन ग्रंथ श्री दुर्गासप्तशती में बलि प्रथा के समर्थन में लिखे श्लोक विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न करते हैं इस प्रकार के संशोधन के पश्चात ही माता जगदम्बा की वास्तविक श्री दुर्गासप्तशती का अवतरण होगा। अतः कृपया इसको अन्यथा न लें क्योंकि जब बलि प्रथा रोकने का प्रयास करते हैं तब हमें इसके समर्थन में इसी प्रकार के श्लोक दिखाकर किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया जाता है। इसलिए संपादक महोदय / पंडितों व कथावाचकों से करबद्ध 🙏 निवेदन है कि इस प्रकार का संशोधन/संवर्द्धन वर्तमान के परिदृश्य में अति आवश्यक है। 

श्री दुर्गार्पणमस्तु 




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