प्रतिदिन स्मरण योग्य मंत्र

।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
 प्रतिदिन स्मरण योग्य मंत्र संग्रह

मेरी भवबाधा हरो , राधा नागर सोय ।
ज्यां तन की झाईं पड़त,श्याम हरित द्युती होय ।।

सरस्वती व ईश्वर प्रार्थना
परम रास गए शरण प्रभु राखिए, जागिए कृपा निधान, पक्षी बन बोले।
उदय किरण होने लगे, चकवा चकई मिलन गए ।।

बिघ्न विदारण विरद वर, वारण बदन विकाश ।
वर देवहुं बाढ़े विशद, वाणी बुद्धि विलास ।।१।।
युगल चरण जोवत जगत, जपत रैन दिन तोही ।
जय माता सरस्वती , भक्ति उक्ति दे मोहिं ।।२।।

४३ दिन तक → ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद् वद् कीर्तिश्वरी स्वाहा। ॐ ऐं कुलजे ऐं सरस्वती स्वाहा ।। के जपोपरांत प्रतिदिन २ केले दही मिश्री का भोग लगाकर ग्रहण करें और नीले श्वेत पुष्प चढ़ाएं।

कुछ बीज मंत्र का तात्पर्य→
ॐ → प्रणव, ध्रुव, तैजस, परमात्मा
ह्रीं → शासन, आकाश, माया, त्रैलोक्य, दहन, आकर्षण, पुजाग्रहण, शोधन, द्वेष, विद्वेषण बीज
श्रीं → पृथ्वी, वायु, ध्वनि, शक्ति, शस्त्र, विषाहार, स्वधा, पौष्टिक, लक्ष्मी 
ऐं → वाक्, तत्व, वायु बीज
क्लीं → कृष्ण, काम, अंकुश, निरोध, विसर्जन, चलन, आकर्षण, स्तम्भन, अमृत बीज
लं → पृथ्वी
वं→ जल
रं→ अग्नि
यं/स्वा→ वायु
हं→ आकाश
क्षिं→ पृथ्वी
फट्→ विसर्जन, चलन
वौषट्→ आकर्षण, पूजाग्रहण, दहन
हो→ शासन
हाः→ आकाश
क्रौं→ अंकुश, निरोध
संवौषट्→ आकर्षण
ग्लौं→ स्तम्भ
स्वाहा→ ध्वनि, शक्ति
नमः→ शोधन
क्ष: फट्→ शस्त्र बीज
श्लीं→ अमृत बीज 
क्ष्वीं→ विषाहार बीज
हूं→ द्वेष, विद्वेषण
जूं→ विद्वेषण
ह्रूं/ह्रुं/हूं, ठं/ठ:, गं, द्रीं, प्रीं, ह्स्ख्फ्रें, 
क्रीं, स्फ्रें/स्फ्रीं/प्ल्रें, ब्लूं

   
 Chakramudra/चक्रमुद्रा
 प्रात: कर-दर्शनम्

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

         पृथ्वी क्षमा प्रार्थना

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमे॥

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

               स्नान मन्त्र 

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

           🌞 सूर्यनमस्कार🌞

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

                🔥दीप दर्शन🔥

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

             गणपति स्तोत्र 

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणं
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजं

गजानन, भूतगणों से सेवित, कपित्थ, जम्बू जिसका प्रिय भोजन है, पार्वतीपुत्र, शोकविनाशक गणेश जी को मेरा नमन।


        ⚡आदिशक्ति वंदना ⚡

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

            शिव स्तुति 

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

गौरवर्ण, गले में सांप, परम कारुणिक, विश्व के मूल कारण, हृदय में सदा विराजमान पार्वती शिव को मेरा प्रणाम।

               विष्णु स्तुति 

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

सशंखचक्रं सकिरीटकुंडलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष:स्थलकौस्तुभश्रियं
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजं।।

शंख, चक्र, किरीट, कुंडल, पीताम्बर, गले में हार, वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि धारण किए हुए भगवान विष्णु को मेरा नमन।

            🦚 श्री कृष्ण स्तुति 🦚

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते, गोपाल चूडामणि:॥
फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवंदनं बर्हावतंसप्रियं।
श्रीवत्साड्कंमुदारकौस्तुभधरं पीताम्बरमसुन्दरम।।
गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनु गोगोपसंघावृतं।
गोविंदं कलवेणुवादनपरं दिव्याड्गभूषं भजे।।

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

    ▬۩۞۩▬
वंशी विभूषित करान्नवनीरदाभात पीताम्बरादरुण बिम्बफलाधरोष्ठात पूर्णेन्दुसुंदर मुखादरविंदनेत्रात
     कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने

हाथ में वंशी, घनश्याम–शरीरपर पीताम्बर, बिम्बा–जैसे लाल होंठ, पूर्णचन्द्र—जैसा मुख, कमलनेत्र—ऐसे कृष्ण के अतिरिक्त और कोई तत्त्व मैं नहीं जानता।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 
   हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
▬۩۞۩▬

कृष्ण यत्पादपंकजम पंजरांतं अद्यैवमेविशतु मानस राजहंस। प्राण प्रयाण समये कफवातपित्तै: कण्ठ अवरोधनं विधौ स्मरणं कुत:स्ते।।


            श्रीराम वंदना 

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाड्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं
नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।

नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग है
, सीताजी वामभागमें विराजमान हैं और हाथों में अमोघ बात और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूं।

               श्रीरामाष्टक

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

     एक श्लोकी रामायण 

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

           सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती 
निःशेषजाड्याऽपहा॥

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वती।।

हे सरस्वती! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति—इन आठ स्वरूपोंद्वारा मेरी रक्षा करो।

            हनुमान वंदना

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

मन जैसी स्फुर्ति और वायु—जैसे वेगवाले, परम बुद्धिमान, इन्द्रियनिग्रही, वानरपति, वायु पुत्र हनुमानकी शरण लेता हूं। 

         स्वस्ति-वाचन 

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

             शांति पाठ 

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, वासुदेव विश्वेश्वराय।
आदिपुरूष अपरम्पार, अलेख पुरुषाय नमः।।
जग बंधु ज्योति स्वरूप, जीय की जाननहार।
हरियश मांगन आयो, दास प्रभु के द्वार ।।

तुलसी प्रार्थना
मूलतो ब्रह्मरुपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रत: शिवरूपाय वृक्षराजाय स: शनैश्चरायते नमः
नमस्तुलसी कल्याणि नमो विष्णु प्रिये शुभे ।
नमो मोक्षप्रदे देवी नमः सम्पत्प्रदायिके।।


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