श्री जानकी जन्म स्तुति
।। श्रीराधाकृष्ण चरणकमलेभ्यो नम: ।।
श्री जानकी जन्म स्तुति
भई प्रगट कुमारी भूमि बिदारी जनहितकारी भयहारी।
अतुलित छविधारी मुनि मन हारी जनक दुलारी सुकुमारी।।
सुंदर सिंहासन तेहि पर आसन कोटि हुतासन दुतिकारी।
सिर छत्र विराजे सखीगण साजे निज निज करज कर धारे।।
सुरसिद्ध सुजाना हनहिं निशाना चढ़े विमाना समुदाई ।
बरसहिं बहुफुला मंगलमूला अनुकूला सिय गुण गाई।।
देखहिं सब ठाडे लोचन गाढ़े सुख बाढे उर अधिकाई।
स्तुति मुनि करहिं आनंद भरहि पायनि पडहि हरषाई।।
ऋषि नारद आए नाम बताए सुखपाए अति नृपज्ञानी।
सीता अस नामा पूरण कामा सब सुखधामा गुणखानी।।
सिय सन मुनिराई बिनय सुनाई समय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तनु लीजै चरित सुकिजै यह सुख दीजै नृपरानी।।
सुनि मुनिवर बानी सिय मुस्कानी लीला ठानी सुखदाई।
सोबत जनुजागी रोवन लागी नृप बडभागी उर लागी।।
संपत्ति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ तेहि सुख लागेउ मनलाई।
स्तुति सिय केरि प्रेमल तेरी बरनि कचेरी सिर नाई।।
दोहा
निजइच्छा मख भूमि ते प्रगट भई सिय आय।
चरित किए पावन परम परधन मोद निकाय।।
जनकपुर जनकनंदिनी की जय, अयोध्या रामलला की जय, पवनसुत हनुमान जी महाराज की जय
श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जय,श्रीराम जन्म भूमि की जय
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श्री राम स्तुति
जय राम रमा रमनं समनं,भवताप भयाकुल पाहिजनं।
अवधेश सुरेश रमेश विभो,शरणागत मांगतपाहि प्रभो।दसशीश बिनाशनबीसभुजा,कृतदुरिमहामही भूरि भुजा।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे,सरपावक तेज प्रचंड दहे।
महिमंडल मंडन चारुतरं,धृत सायकचाप निषंगवरं।।
मदमोहमहा ममता रजनी,तम पुंज दिवाकर तेज अनि।
मनजात किरात निपात किए,मृगलोभ कुभोग सरेन हिए।।
हतिनाथ अनाथनि पाहि हरे,बिषया बन पा वर भूलिपरे।।
बहुरोग बियोगन्हि लोगहए,भवदंध्रि निरादर के फलए।
भवसिंधु अगाधपरे नरते,पदपंकजप्रेम न जे करते।।
अतिदीन मलिनदुखी नितहीं,जिन्हके पदपंकजप्रीति नहीं।।
अवलंब भवंत कथा जिन्हके,प्रिय संत अनंत सदा तिन्हके।।
नहीं राग न लोभ न मान मदा,तिन्ह के समवैभव वा बिपदा।।
एहि ते तवसेवक होत मुदा, मुनि त्यागत जोग भरोस सदा।।
करिप्रेम निरंतर नेम लिए,पदपंकज सेवत शुद्धहिए।।
सम मानि निरादर आदरहिं,सब संत सुखी बिचरंत मही
मुनि मानसपंकज भृग भजे, रघुबीर महा रनधीर अजे।
तव नाम जपामि नमामि हरि,भवरोग महागद मानअरी
गुणशील कृपा परमायतनं,प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं।।
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं,महीपाल बिलोकय दीनजनं।।
दोहा
बार बार वर मांगउं,हरषि देउ श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनि भगति सदा सत्संग।।
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।।श्रीराधाकृष्ण विजयतेतराम।।